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सम्यक्-ज्ञान (Right - Knowledge) सम्यक् - चरित्र (Right conduct ) और सम्यक्-तप या आत्म संयम (Right Austrity ) । इनमें से सम्यक् - चरित्र और सम्यक्-तप को एक ही मानकर उमास्वाति और अन्य जैन आचार्यों ने मुक्ति का त्रिपक्षीय मार्ग बताया है। मुक्ति का यह त्रिपक्षीय मार्ग सामान्तः हिन्दुओं और बौद्धों में भी मान्य रहा है । हिन्दुओं में यह भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग के रूप में और बौद्धों में शील, समाधि, और प्रज्ञा के रूप में स्वीकार्य है । सम्यक् - ज्ञान की तुलना गीता के ज्ञानयोग से और बौद्धों की प्रज्ञा के साथ की जा सकती है। इसी प्रकार सम्यक् - दृष्टिकोण या सम्यक् श्रद्धा की तुलना गीता के भक्तियोग और बौद्धों की सम्यक् दृष्टि के साथ तथा सम्यक् - चरित्र की तुलना गीता के कर्मयोग और बौद्धों के शील के साथ हो सकती है । लेकिन यहाँ हमें इस तथ्य के प्रति सचेत रहना चाहिये कि हिन्दू विचारकों के अनुसार मुक्ति की प्राप्ति के लिये साधनों के इन तीनों अंगो में किसी भी एक अंग का अनुगमन पर्याप्त है किन्तु जैन विचारक इससे सहमत नहीं है। उनके अनुसार साधना के इन तीनों अंगो में से एक का भी अभाव हो तो मुक्ति की प्राप्ति अंसभव है । इस प्रकार जैनों को इन तीनों प्रकार के योगों अर्थात भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग का संश्लिष्ट रूप ही मान्य है । “यहाँ यह दृष्टव्य है कि जैनों का यह त्रिपक्षीय मार्ग भी सामयिक या समत्त्वयोग की साधना में समाहित हो सकता है। जैनों के लिए सम्यक् - दृष्टि या सम्यक्-श्रद्धा, सम्यक्-ज्ञान और सम्यक् चारित्र का उत्कृष्ट सम्मिश्रण समत्वयोग है। उत्तराध्ययनसूत्र (28 / 30 ) में कहा गया है कि सम्यक् दृष्टिकोण या श्रद्धा के बिना सम्यक्-ज्ञान संभव नहीं है और सम्यक् ज्ञान के बिना सम्यक् चारित्र भी संभव नहीं और सम्यक्- चारित्र या आचरण के बिना मुक्ति भी अप्राप्त ही है । इस प्रकार मुक्ति की प्राप्ति के लिये ये तीनों आवश्यक है ।
समत्वयोग
जैनियों का मूल सैद्धांतिकयोग या तात्विकयोग (fundamental yoga of jainism) सामयिक या समत्वयोग है । यह जैनियों की एक प्रमुख अवधारणा है, भिक्षु और गृहस्थ के षट्कर्तव्यों में सर्वप्रथम है। प्राकृत शब्द समाइय (samaiya) अग्रेंजी में अनुवाद अनेक प्रकार से हुआ है जैसे चित्त की स्थिरता (Observance of equaminity), सब जीवों को अपने समान समझना ( viewing-all the living beings as ones own self), समता की भावना (conception of equality), व्यक्ति के व्यवहार में संतुलन की स्थिति (harmanious state of ones behaviour), व्यक्तित्व की क्रमिक पूर्णता के साथ मन, वाणी और शरीर की क्रियाओं में पवित्रता या पूर्ण सदाचार का परिचालन (integration of personality
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
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