Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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ही लगता है कि वस्तुतः विचार या विकल्प दो प्रकार के होते हैं - एक कामना रूप विचार और दूसरा निर्विकार या निष्कामबोध विचार। निष्काम विचार में मात्र कर्तव्य बुद्धि होती है। केवली में कामनारूप या जिज्ञासा रूप विकल्प नहीं होते, किन्तु विवेक रूप विकल्प तो होते है। यह भी द्रव्य को द्रव्य के रूप में गुण को गुण के रूप में और पर्याय को पर्याय के रूप में जानता है और ऐसा ज्ञान विकल्परूप ज्ञान है। क्या सर्वज्ञ का ज्ञान निरपेक्ष होता है?
यद्यपि जैन दर्शन में यह माना गया है कि सर्वज्ञ या केवली सम्पूर्ण सत्य का साक्षात्कार कर लेता है, अतः यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि क्या सर्वज्ञ का ज्ञान निरपेक्ष है। इस सन्दर्भ में जैन दार्शनिकों में भी मतभेद पाया जाता है। कुछ समकालीन जैन विचारक सर्वज्ञ के ज्ञान को निरपेक्ष मानते हैं जबकि दूसरे कुछ विचारकों के अनुसार सर्वज्ञ का ज्ञान भी सापेक्ष होता है। पं. दलसुखभाई मालविणया ने “स्याद्वादमंजरी” की भूमिका में सर्वज्ञ के ज्ञान को निरपेक्ष बताया है। जबकि मुनि श्री नगराजजी ने “जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान" नामक पुस्तिका में यह माना है कि सर्वज्ञ का ज्ञान भी कहने भर को ही निरपेक्ष है क्योंकि स्यादस्ति, स्यान्नस्ति से परे वह भी नहीं है। किन्तु वस्तुस्थिति यह है कि जहाँ तक सर्वज्ञ के वस्तु जगत् के ज्ञान का प्रश्न है उसे निरपेक्ष नहीं माना जा सकता क्योंकि उसके ज्ञान का विषय अनन्त धर्मात्मक वस्तु है। अतः सर्वज्ञ भी वस्तुतत्त्व के अनन्त गुणों को अनन्त अपेक्षाओं से ही जान सकता है। वस्तुगत ज्ञान या वैषयिक ज्ञान (Objective Knowledge) कभी भी निरपेक्ष नहीं हो सकता, फिर चाहे वह सर्वज्ञ का ही क्यों न हो? इसीलिए जैन आचार्यों का कथन है कि दिप से लेकर व्योम तक वस्तु मात्र स्याद्वाद्ध की मुद्रा से अंकित है। किन्तु हमें यह ध्यान रखना होगा कि जहाँ तक सर्वज्ञ के आत्म-बोध का प्रश्न है वह निरपेक्ष हो सकता है क्योंकि वह विकल्प रहित होता है। सम्भवतः इसी दृष्टिकोण को लक्ष्य में रखकर आचार्य कुन्दकुन्द को यह कहना पड़ा था कि व्यवहार दृष्टि से सर्वज्ञ सभी द्रव्यों को जानता है किन्तु परमार्थतः तो वह आत्मा को ही जानता है। सर्वज्ञ का आत्म बोध तो निरपेक्ष होता है किन्तु उसका वस्तु विषयक ज्ञान सापेक्ष होता है।
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जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान