Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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12. हेतु के कारण को लेकर भी दोनों परम्पराओं में मतभेद देखा जा सकता है।
जहाँ बौद्ध दार्शनिक त्रैरूप्य हेतु अर्थात् पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व, विपक्ष-असत्त्व का प्रतिपादन करते हैं, वहाँ जैन दार्शनिक साध्यसाधन अविनाभाव अर्थात् अन्यथानुपलब्धि को ही हेतु का एकमात्र लक्षण बताते हैं। जैन दार्शनिक पात्रकेसरी ने तो एतदर्थ त्रिलक्षणकदर्शन नामक स्वतंत्र ग्रंथ की ही रचना
की थी। 13. अनुपलब्धि को जहाँ बौद्ध दार्शनिक मात्र निषेधात्मक या अभाव रूप मानते
हैं, वहाँ जैन दार्शनिक उसे विधि-निषेध रूप मानते हैं।
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जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान