Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अरबन इस समस्या का समाधान भी प्रस्तुत करते हैं कि मूल्यांकन करनेवाली मानवीय चेतना के द्वारा यह कैसे जाना जाय कि कौन से मूल्य उच्च कोटि के हैं और कौन से मूल्य निम्न कोटि के? अरबन इसके तीन सिद्धान्त बताते हैं -
पहला सिद्धान्त यह है कि साध्यात्मक या आन्तरिक मूल्य साधनात्मक या बाह्य मूल्यों की अपेक्षा उच्च है। दूसरा सिद्धान्त यह कि स्थायी मूल्य अस्थायी मूल्यों की अपेक्षा उच्च है और तीसरा सिद्धान्त यह है कि उत्पादक मूल्य अनुत्पादक मूल्यों की अपेक्षा उच्च हैं।
अरबन इन्हें व्यावहारिक विवेक के सिद्धान्त या मूल्य के नियम कहते हैं। ये हमें बताते हैं कि आंगिक मूल्य जिन्में आर्थिक, शारीरिक और मनोरंजनात्मक मूल्य समाहित हैं, उच्च प्रकार के हैं। उसी प्रकार सामाजिक मूल्यों की अपेक्षा आध यात्मिक मूल्य, जिनमें बौद्धिक, सौन्दर्यात्मक और धार्मिक मूल्य भी समाहित हैं, उच्च प्रकार के हैं।
अरबन की दृष्टि में मूल्यों की इसी क्रम व्यवस्था के आधार पर आत्मसाक्षात्कार के स्तर हैं। आत्मसाक्षात्कार के लिए प्रस्थित आत्मा की पूर्णता उस स्तर पर है, जिसे मूल्यांकन करनेवाली चेतना सर्वोच्च मूल्य समझती है और सर्वोच्च मूल्य वह है जो अनुभूति की पूर्णता में तथा जीवन के सम्यक् संचालन में सबसे अधिक योगदान करता है। जैन दृष्टि में इसे हम वीरतागत और सर्वज्ञता की अवस्था कह सकते हैं।
एक अन्य आध्यात्मिक मूल्यवादी विचारक डब्ल्यू.आर. सार्ली जैन परम्परा के निकट आकार यह कहते हैं कि नैतिक पूर्णता ईश्वर के समान बनने में है। किन्तु कुछ भारतीय परम्परायें तो इससे भी आगे बढ़कर यह कहती हैं कि नैतिक पूर्णता परमात्मा होने में हैं आत्मा से परमात्मा, जीव से जिन, साधक से सिद्ध, अपूर्ण की उपलब्धि में ही नैतिक जीवन की सार्थकता है।
___ अरबन की मूल्यों की क्रम-व्यवस्था भी भारतीय परम्परा के दृष्टिकोण के निकट ही है। जैन एवं अन्य भारतीय दर्शनों में भी अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष पुरुषार्थों में यही क्रम स्वीकार किया गया है। अरबन के आर्थिक मूल्य अर्थ पुरुषार्थ के, शारीरिक एवं मनोरंजनात्मक मूल्य काम पुरुषार्थ के, साहचर्यात्मक ओर चारित्रिक मूल्य धर्म पुरुषार्थ के तथा सौन्दर्यात्मक, ज्ञानात्मक और धार्मिक मूल्य मोक्ष पुरुषार्थ के तुल्य हैं। भारतीय दर्शनों में जीवन के चार मूल्य
जिस प्रकार पाश्चात्य आचारदर्शन में मूल्यवाद का सिद्धान्त लोकमान्य है उसी प्रकार भारतीय नैतिक चिन्तन में पुरुषार्थ-सिद्धान्त, जो कि जीवन मूल्यों का ही सिद्धान्त है, पर्याप्त लोकप्रिय रहा है। भारतीय विचारकों ने जीवन के चार पुरुषार्थ या मूल्य माने हैं -
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जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान