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निर्वाण एक भावात्मक तथ्य है - इस संबन्ध में बुद्ध वचन इस प्रकार हैं – “भिक्षुओ ! (निर्वाण ) अजात, अमूर्त, अकृत, असंस्कृत है । भिक्षुओ ! यदि यह अज्ञात अमूर्त, अकृत, असंस्कृत नहीं होता, तो जात, मूर्त, और संस्कृत का व्युपशम नहीं हो सकता । भिक्षुओ ! क्योंकि वह अजात, अकृत और असंस्कृत है इसलिये जात, मूर्त, कृत और संस्कृत का व्युपशम जाना जाता है ।
संदर्भ -
1. कृत्स्न कर्मक्षयान् मोक्षः- तत्वार्थसूत्र, 101
2.
बन्ध वियोगो मोक्षः अभिधान राजेन्द्र खंड 6, पृष्ठ 461
3. मुक्खो जीवस्स सुद्ध रूपस्स - वही खंड 6, पृष्ठ 461
4. तुलना कीजिये - (अ) आत्मा मीमांसा ( दलसुखभाई) पृष्ठ 66-67 (ब) ममेति बध्यते जन्तुर्ममभेति प्रमुच्यते गरूड़ पुराण अव्वाबाहं अवत्थाणं-:व्यावाधावर्जितभवस्थानम्-अवस्थितिः जीवस्यासौ मोक्ष इति । अभिधानराजेन्द्र खंड 6, पृष्ठ 431
5.
6.
नियमसार 176-177
7. विज्जदि केवलणाणं, केवलसोक्खं च केवलविरियं । केवलदिट्ठि अमुत्तं अत्थितं सप्पदेसत्तं । । नियमसार 181
8.
कुछ विद्वानों ने अगुरुलघुत्व का अर्थ न हल्का न भारी किया है। 9. प्रवचनासरोद्धार द्वार 276 गाथा 1593-1594
10. सदसिव संखो मक्कडि बुद्धो गोयाइयो य वेसेसी ।
ईसर मंडल दंसण विदूसणट्ठ कयं एदं ।
• गोम्मटसार ( नेमिचन्द्र )
11. से नदी, न हस्से, न वट्टे, न तँसे, न चउरंसे, न परिमंडले, न किण्हे, न नीले, न लोहिए, न हालिद्दे, न सुकिल्ले, न सुरभिगन्धे, न दुरभिगन्धे, न तित्ते, न कडु, कसाए, न अंबिले न महुरे, न कवखड़े, न मउए, न शुरूए, न लहुए, न सीए, न उण्हे, न निद्वे, न लुक्खे, न काऊ, न रूहे, न संगे, न इत्थी, न पुरिसे न अन्नहा--सेनस, न रूवे, न गंधे, न रसे, न फासे ।
आचारांग सूत्र 1/5/6/
12. णवि दुक्खं वि सुक्खं णवि पीड़ा व णवि विज्जदे बाहा ।
वि मरणं वि जगणं, तत्थेव य होई णिव्वाणं । ।
णिव इंदिय उवसग्गा णिवमोहो विधियो ण णिद्दाय ।
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य तिहा व छुहां, तत्थेव हवदि णिव्वाणं । । - नियमसार 178-179
13. सव्वेसरा नियट्ठति, तक्क जत्थ न विज्जइ, मई तत्थन गहिया ओए अप्प इट्ठाणस्स खेयन्ने - उवप्प न विज्जए - अरूवी सत्ता अपयस्स पयं नत्थि । - आचारांग 1/5/6/171 तुलना कीजिए -
यतो वाचोनिवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह - तैत्तिरीय 2/9 न चक्षुषा गृह्यते नापि वाचा मुण्डक 3/1/8
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान