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छोड़ जाता है। उससे उपलब्ध होनेवाले आनन्द की तुलना खुजली खुजाने से की गयी है, जिसकी फलनिष्पत्ति क्षणिक सुख के बाद तीव्र वेदना में होती है । धर्मपुरुषार्थ सामाजिक धर्मिक मूल्य के रूप में स्वतः साध्य है, लेकिन वह भी मोक्ष का साधन माना गया है जो सर्वोच्च मूल्य है । इस प्रकार अरबन के उपर्युक्त मूल्य निर्धारण के नियमों के आधार पर भी अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष पुरुषार्थों का यही क्रम सिद्ध होता है जो कि जैन और दूसरे भारतीय आचार- दर्शनों में स्वीकृत है, जिसमें अर्थ सबसे निम्न मूल्य है और मोक्ष सर्वोच्च मूल्य है । मोक्ष सर्वोच्च मूल्य क्यों ?
इस सम्बन्ध में ये तर्क दिये जा सकते हैं
1. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से जीवमात्र की प्रवृत्ति दुःख निवृत्ति की ओर है । क्योंकि मोक्ष दुःख की आत्यन्तिक निवृत्ति है; अतः वह सर्वोच्च मूल्य है । इसी प्रकार आनन्द की उपलब्धि भी प्राणीमात्र का लक्ष्य है, चूँकि मोक्ष परम आनन्द की अवस्था है, अतः वह सर्वोच्च मूल्य है ।
2. मूल्यों की व्यवस्था में साध्य साधक की दृष्टि से एक क्रम होना चाहिए और उस क्रम में कोई सर्वोच्च एवं निरपेक्ष मूल्य होना चाहिए। मोक्ष पूर्ण एवं निरपेक्ष स्थिति हैं। अतः वह सर्वोच्च मूल्य है । मूल्य वह है जो किसी इच्छा की पूर्ति करे । अतः जिसके प्राप्त हो जाने पर कोई इच्छा ही नहीं रहती है, वही परम मूल्य है। मोक्ष में कोई अपूर्ण इच्छा नहीं रहती है, अतः वह परम मूल्य है । 3. सभी साधन किसी साध्य के लिए होते हैं और साध्य की उपस्थिति अपूर्णता की सूचक है। मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् कोई साध्य नहीं रहता, इसलिए वह परम मूल्य है । यदि हम किसी अन्य मूल्य को स्वीकार करेंगे तो वह साधन - मूल्य
होगा और साधन - मूल्य को परम - मूल्य मानने पर नैतिकता में सार्वलौकिकता एवं वस्तुनिष्ठता समाप्त हो जायेगी ।
4. मोक्ष अक्षर एवं अमृतपद है, अतः स्थायी मूल्यों में वह सर्वोच्च मूल्य है । 5. मोक्ष आन्तरिक प्रकृति या स्वस्वभाव है । वही एकमात्र परम मूल्य हो सकता है, क्योंकि उसमें हमारी प्रकृति के सभी पक्ष अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति एवं पूर्ण समन्वय की अवस्था में होते हैं ।
भारतीय और पाश्चात्य मूल्य सिद्धान्तों की तुलना
अरबन और एबरेट ने जीवन के विभिन्न मूल्यों की उच्चता एवं निम्नता का जो क्रम निर्धारित किया है, वह भी भारतीय चिन्नत से काफी साम्य रखता है । अरबन ने मूल्यों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है -
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
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