Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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यह माना जा सकता कि वे मूल्य जो मनोवृत्यात्मक या भावनात्मक नीति से सम्बन्धित हैं, अपरिवर्तनीय हैं; किन्तु वे मूल्य जो आचरणात्मक या व्यवहारात्मक हैं, परिवर्तनीय हैं।
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2. दूसरे, नैतिक साध्य या नैतिक आदर्श अपरिवर्तनशील होता है, किन्तु उस साध्य के साधन परिवर्तनीय होते हैं । जो सर्वोच्च शुभ है वह अपरिवर्तनीय है, किन्तु उस सर्वोच्च शुभ की प्राप्ति के जो नियम या मार्ग हैं वे विविध एवं परिवर्तनीय हैं, क्योंकि एक ही साध्य की प्राप्ति के अनेक साधन हो सकते हैं । यहाँ हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि सर्वोच्च शुभ को छोड़कर कुछ अन्य साध्य कभी साधन भी बन जाते है, अतः साध्य साधन का वर्गीकरण निरपेक्ष नहीं है, उनमें परिवर्तन सम्भव है। यद्यपि जब तक कोई मूलय साध्य स्थान पर बना रहता है, तब तक उसकी मूल्यवत्ता रहती है । किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि किसी स्थिति में जो साध्यमूल्य है, वह कभी साधन मूल्य होते हैं और कभी सांध्य मूल्य । अतः उनकी मूल्यवत्ता अपने स्थान परिवर्तन के साथ परिवर्तित हो सकती है । पुनः वैयक्तिक रूचियों, क्षमताओं और स्थितियों की भिन्नता के आधार पर सभी के लिए समान नियमों का प्रतिपादन सम्भव नहीं है । अतः साधन मूल्यों को परिवर्तनीय मानना ही एक यथार्थ दृष्टिकोण हो सकता है ।
3. तीसरे, नैतिक नियमों में कुछ नियम मौलिक होते हैं और कुछ उन मौलिक नियमों के सहायक होते हैं । साधारणतया सामान्य या मूलभूत नियमही अपरिवर्तनीय माने जा सकते हैं, विशेष नियम परिवर्तनीय होते हैं । यद्यपि हमें यह मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि अनेक परिस्थितियों में सामान्य नियमों के भी अपवाद हो सकते हैं और वे नैतिक भी हो सकते हैं, फिर भी इतना तो ध्यान में रखना आवश्यक है कि अपवाद को कभी भी नियम का स्थान नहीं दिया जा सकता है। यहाँ एक बात जो विचारणीय है वह यह कि मौलिक नियमों एवं साध्य-मूल्यों की अपरिवर्तनशीलता भी एकांतिक नहीं है । वस्तुतः नैतिक मूल्यों के सन्दर्भ में एकान्त रूप से अपरिवर्तनशीलता और एकान्त रूप से परिवर्तनशीलता को स्वीकार नहीं किया जा सकता । यदि नैतिक मूल्य एकान्त रूप से परिवर्तनशील होगें तो उनकी कोई नियमकता ही नहीं रह जावेगी । इसी प्रकार वे यदि एकान्तरूप से अपरिवर्तनशील होंगे तो सामाजिक सन्दर्भों के अनुरूप रह सकेंगे । नैतिक मूल्य इतने निर्लोच तो नहीं है कि वे परिवर्तनशील सामाजिक परिस्थितियों के साथ समायोजन नहीं कर सके, किन्तु वे इतने लचीले भी नहीं कि हर कोई उन्हें अपने अनुरूप ढालकर उनके स्वरूप को ही विकृत कर दे ।
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
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