Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
ज्ञान को लेकर ही है, सर्वज्ञ के ज्ञान के सम्बन्ध में नहीं हैं। सामान्य व्यक्तियों के ज्ञान की सत्यता का मूल्याँकन पूर्व अनुभव दशा में स्वतः और पूर्व अनुभव में अभाव में परतः अर्थात् ज्ञानान्तर ज्ञान से होता है, यद्यपि पूर्व अनुभव भी ज्ञान का ही रूप है, अतः उसे भी अपेक्षा विशेष से परतः कहा जा सकता हैं। जहाँ तक की ज्ञान की उत्पत्ति का प्रश्न है, स्वानुभव को छोड़कर वह परतः ही होती है क्योंकि वह ज्ञेय अर्थात् “पर” पर निर्भर है। अतः ज्ञान की सत्यता की उत्पत्ति या कसौटी को परतः ही माना गया है। जहाँ तक कथन की सत्यता का प्रश्न है, वह ज्ञान की सत्यता से भिन्न है। कथन की सत्यता का प्रश्न
यह एक सुस्पष्ट तथ्य है कि मानव अपनी अनुभूतियों और भावनाओं को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्ति करता है। भाषा शब्द प्रतीकों और सार्थक ध्वनि संकेतों का एक सुव्यवस्थित रूप है। वस्तुतः हमने व्यक्तियों, वस्तुओं, तथ्यों, घटनाओं, क्रियाओं एवं भावनाओं के लिए शब्द प्रतीक बना लिये हैं। इन्हीं शब्द प्रतीकों एवं ध्वनि संकेतों के माध्यम से हम अपने विचारों, अनुभूतियों और भावनाओं का सम्प्रेषण करते हैं।
यहाँ मूल प्रश्न यह है कि हमारी इस भाषायी अभिव्यक्ति को हम किस सीमा तक सत्यता का अनुषांगिक मान सकते हैं। आधुनिक पाश्चात्य दर्शन में भाषा और उसकी सत्यता के प्रश्न को लेकर एक पूरा दार्शनिक सम्प्रदाय ही बन गया है। भाषा और सत्य का सम्बन्ध आज के युग का एक महत्वपूर्ण दार्शनिक प्रश्न है किसी कथन की सत्यता या असत्यता को निर्धारित करने का आधार आज सत्यापन का सिद्धान्त हैं। समकालीन दार्शनिकों की यह मान्यता है कि जिन कथनों का सत्यापन या मिथ्यापन संभव है, वे ही कथन सत्य या असत्य हो सकते हैं। शेष कथनों का सत्यता से कोई सम्बन्ध नहीं है। ए.जे. एयर ने अपनी पुस्तक में इस समस्या को उठाया है। इस सन्दर्भ में सबसे पहले हमें इस बात का विचार कर लेना होगा कि कथन के सत्यापन से हमारा क्या तात्पर्य है। कोई भी कथन जब इन्द्रियानुभव के आधार पर पुष्ट या अपुष्ट किया जा सकता है, तब ही वह सत्यापनीय कहलाता है। जिन कथनों को हम इन्द्रियानुभव के आधार पर पुष्ट या खण्डित नहीं कर सकते, वे असत्यापनीय होते हैं। किन्तु, इन दोनों प्रकार के कथनों के बीच कुछ ऐसे भी कथन होते हैं जो न सत्यापनीय होते हैं और असत्यापनीय। उदाहरण के लिए मंगल ग्रह में जीव के पाये जाने की संभावना है। यद्यपि यह कथन वर्तमान में सत्यापनीय नहीं है, किन्तु यह संभव है कि इसे भविष्य में पुष्ट या
148
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान