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यह अवधारणा रही है कि एक पुद्गल - परमाणु जितनी जगह घेरता है - वह एक आकाश प्रदेश कहलाता है, दूसरे शब्दों मे, एक आकाश-प्रदेश में एक परमाणु ही रह सकता है, किन्तु दूसरी ओर आगमों में यह भी उल्लेख है कि एक आकाश प्रदेश में अनन्त पुद्गल - परमाणु समा सकते हैं । इस विरोधाभास का सीधा समाधान हमारे पास नहीं था, लेकिन विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि विश्व में कुछ ऐसे ठोस द्रव्य हैं, जिनका एक वर्ग इंच का वजन लगभग 8 सौ टन होता है। इससे यह भी फलित होता है कि जिन्हें हम ठोस समझते हैं, वे वस्तुतः कितने पोले हैं। अतः सूक्ष्म अवगाहन शक्ति के कारण यह संभव है कि एक ही आकाश प्रदेश में अनन्त परमाणु भी समाहित हो जाएं ।
जैन दर्शन का परमाणुवाद आधुनिक विज्ञान के कितना निकट है, इसका विस्तृत विवरण श्री उत्तमचन्द जैन ने अपने लेख 'जैन दर्शन का तात्त्विक क्ष परमाणुवाद' में दिया है । हम यहाँ उनके मन्तव्य का कुछ अंश आंशिक परिवर्तन के साथ उद्धृत कर रहे हैं
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जैन परमाणुवाद और आधुनिक विज्ञान
जैन-दर्शन की परमाणुवाद पर आधारित निम्न घोषणाएँ आधुनिक विज्ञान के परीक्षणों द्वारा सत्य साबित हो चुकी हैं
1. परमाणुओं के विभिन्न प्रकार के यौगिक, उनका विखण्डन एवं संलयन, विसरण, उनकी बंध, शक्ति, स्थिति, प्रभाव, स्वभाव, संख्या आदि का अतिसूक्ष्म वैज्ञानिक विवेचन जैन ग्रन्थों में विस्तृत रूप में उपलब्ध है ।
2. पानी स्वतंत्र तत्त्व नहीं, अपितु पुद्गल की ही एक अवस्था है । यह वैज्ञानिक सत्य है कि जल यौगिक है ।
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शब्द आकाश का गुण नहीं, अपितु भाषावर्गणारूप स्कंधों का अवस्थान्तर है, इसलिए यंत्रग्राह्य है ।
4. विश्व किसी के द्वारा निर्मित नहीं, क्योंकि सत् की उत्पत्ति या विनाश संभव नहीं । सत् का लक्षण ही उत्पाद - व्यय - ध्रौव्ययुक्त होना है। पुद्गल निर्मित विश्व मिथ्या एवं असत् नहीं है, सत् स्वरूप है ।
5. प्रकाश - अंधकार तथा छाया - ये पुद्गल की ही पृथक-पृथक पर्याय हैं। यंत्र ग्राह्य हैं। इनके स्वरूप की सिद्धि आधुनिक सिनेमा, फोटोग्राफी, कैमरा आदि द्वारा हो चुकी है।
6. आतप एवं उद्योत भी परमाणु एवं स्कंधों की ही पर्याय हैं, संग्रहणीय हैं । 7. जीव तथा पुद्गल के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक आने जाने में सहकारी अचेतन मूर्त्तिक धर्म नामक द्रव्य है, जो सर्व जगत् में व्याप्त है । विज्ञानवेत्ताओं ने उसे ईश्वर नाम दिया है।
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जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान