________________
वे आज वैज्ञानिक सिद्ध हो रहे हैं । मात्र इतना ही नहीं, इन सूत्रों की वैज्ञानिक ज्ञान के प्रकाश में जो व्याख्या की गयी, वह अधिक समीचीन प्रतीत होती है । उदाहरण के रूप में, परमाणुओं के पारस्परिक बन्धन से स्कन्ध के निर्माण की प्रक्रिया को समझाने हेतु तत्त्वार्थसूत्र के पाँचवे अध्याय का एक सूत्र है- स्निग्धरूक्षत्वात् बन्धः। इसमें स्निग्ध और रुक्ष परमाणुओं के एक-दूसरे से जुड़कर स्कन्ध बनाने की
कही गयी है । सामान्य रूप से इसकी व्याख्या यह कहकर ही की जाती थी कि स्निग्ध (चिकने) एवं रूक्ष (खुरदरे) परमाणुओं में बन्ध होता है, किन्तु आज इस सूत्र की वैज्ञानिक दृष्टि से व्याख्या होगी, तो स्निग्ध अर्थात् धनात्मक विद्युत् से आवेशित एवं रूक्ष अर्थात् ऋणात्मक विद्युत से आवेशित सूक्ष्म कण, जैन दर्शन की भाषा में परमाणु, मिलकर स्कन्ध (Molecule) का निर्माण करते हैं । इस प्रकार तो तत्त्वार्थसूत्र का यह सूत्र अधिक विज्ञानसम्मत प्रतीत होता है। प्रो. जी. आर. जैन ने अपनी पुस्तक Comology Old and New में इस सम्बन्ध में विस्तार से विवेचन किया है और इस सूत्र की वैज्ञानिकता को सिद्ध किया है।
I
।
जहाँ तक भौतिक तत्त्व के अस्तित्व एवं स्वरूप का प्रश्न है, वैज्ञानिकों एवं जैन आचार्यों में अधिक मतभेद नहीं है । परमाणु या पुद्गल कणों में जिस अनन्त शक्ति का निर्देश जैन आचार्यों ने किया था, वह अब आधुनिक वैज्ञानिक अन्वेषणों से सिद्ध हो रहा है । आधुनिक वैज्ञानिक इस तथ्य को सिद्ध कर चुके हैं कि एक परमाणु का विस्फोट भी कितनी अधिक शक्ति का सृजन कर सकता है वैसे भी भौतिक पिण्ड या पुद्गल की अवधारणा को लेकर वैज्ञानिकों एवं जैन विचारकों में कोई अधिक मतभेद नहीं देखा जाता । परमाणुओं के द्वारा स्कन्ध (Molecule) की रचना का जैन सिद्धान्त कितना वैज्ञानिक है, इसकी चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। विज्ञान जिसे परमाणु कहता था, वह अब टूट चुका है। वास्तविकता तो यह है कि विज्ञान ने जिसे परमाणु मान लिया था, वह परमाणु था ही नहीं, वह तो स्कन्ध ही था, क्योंकि जैनों की परमाणु की परिभाषा यह है कि जिसका विभाजन नहीं हो सके, ऐसा भौतिक तत्त्व परमाणु है । इस प्रकार, आज हम देखते हैं कि विज्ञान का तथाकथित परमाणु खण्डित हो चुका है, जबकि जैन दर्शन का परमाणु अभी वैज्ञानिकों की पकड़ में आ ही नहीं पाया है । वस्तुतः जैन दर्शन में जिसे परमाणु कहा जाता है, उसे आधुनिक वैज्ञानिकों ने क्वार्क नाम दिया है और वे आज भी उसकी खोज में लगे हुए हैं । समकालीन भौतिकीविदों की क्वार्क की परिभाषा यह है कि जो विश्व का सरलतम और अन्तिम घटक है, वही क्वार्क है । आज भी क्वार्क को व्याख्यायित करने में वैज्ञानिक सफल नहीं हो पाए हैं । आधुनिक विज्ञान प्राचीन जैन अवधारणाओं को सम्पुष्ट करने में किसी प्रकार सहायक हुआ है कि उसका एक उदाहरण यह है कि जैन तत्त्व-मीमांसा में एक ओर जैन तत्त्वदर्शन
95