Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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जैन-दर्शन में परमाणु
जैन दर्शन में परमाणु को पुद्गल का सबसे छोटा अविभागी अंश माना गया है। यथा “जंदव्वं अविभागी तं परमाणु वियाणेहि "", अर्थात् जो द्रव्य अविभागी है उसको निश्चय से परमाणु जानो । इसी तरह की परिभाषा डेमोक्रिटस ने भी दी है, जिसका उल्लेख पूर्व में कर आये हैं । परमाणु का लक्षण स्पष्ट करते हुए आचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं
अंतादि अंतमज्झं अंतंतं णेव इंदिए गेज्झं ।
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जं अविभागी दव्वं तं परमाणुं पसंसंति । । - नियमासार 29 अर्थात्, परमाणु का वही आदि, वही अंत तथा वही मध्य होता है । वह इंद्रियग्राह्य नहीं होता । वह सर्वथा अविभागी है- उसके टुकड़े नहीं किये जा सकते । ऐसे अविभागी द्रव्य को परमाणु कहते हैं । परमाणु सत् है, अतः अविनाशी है, साथ ही उत्पाद-व्यय-धर्मा, अर्थात् रासायनिक स्वभाव वाला भी है । इस तथ्य को वैज्ञानिकों ने भी माना है । वे भी परमाणु को रासायनिक परिवर्तन क्रिया में भाग लेने योग्य परिणमनशील मानते हैं । परमाणु जब अकेला - असम्बद्ध होता है, तब उसमें प्रतिक्षण स्वभावानुकूल पर्यायें या अवस्थाएँ होती रहती हैं तथा जब वह अन्य परमाणु से सम्बद्ध होकर स्कंध की दशारूप में होता, तब उसमें विभाव या स्वभावेतर पर्यायें भी द्रवित होती रहती हैं। इसी कारण ही उसे द्रव्य कहा जाता है । द्रव्य की व्युत्पत्ति का सम्यक् अर्थ यही है कि जो द्रवित अर्थात् परिवर्तित हो । परमाणु भी इसका अपवाद नहीं है ।
परमाणु की उत्पत्ति
यहां परमाणु की उत्पत्ति का तात्पर्य उसका अस्तित्व में आने से नहीं, क्योंकि परमाणु सत् स्वरूप है । सत् की न तो उत्पत्ति होती है और न नाश । सत् तो सदाकाल अनादि-अनंत है, अतः वह अविनाशी है। यहां परमाणु की उत्पत्ति का तात्पर्य मिले हुए परमाणुओं के समूह से या स्कंधों से विखण्डित होकर परमाणु का आविर्भाव है। वस्तुतः परमाणुओं से स्कन्ध और स्कन्ध से परमाणु आविर्भूत होते रहते हैं । तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार 'भेदादणुः' अर्थात् भेद से अणु प्रकट होता है, किन्तु यह भेद की प्रक्रिया तब तक होनी चाहिए, जब पुद्गल स्कंध एक प्रदेशी अंतिम इकाई के रूप में अविभाज्य न हो जाये । यह अविभाज्य परमाणु किसी भी इंद्रिय या अणुवीक्षण यंत्रादि से भी ग्राह्य (दृष्टिगोचर ) नहीं होता है । जैन दर्शन में इसे केवल सर्वज्ञ के ज्ञान का विषय माना गया है। इस तथ्य की पुष्टि करते हुए प्रोफेसर जान पिल्ले लिखते हैं- वैज्ञानिक् पहले अणु को ही पुद्गल का सबसे छोटा, अभेद्य अंश मानते थे, परन्तु जब उसके भी विभाग होने लगे, तो उन्होंने अपनी धारणा बदल और अणु को मालीक्यूल अर्थात् सूक्ष्म स्कन्ध नाम दिया तथा परमाणु को एटम जैन तत्त्वदर्शन
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