Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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संदर्भ - 1. मज्झिम निकाय 2/3/7 2. सुत्त निकाय 3/1/1 3. ये प्राचीनतम माने जाने वाले उपनिषद् महावीर के समकालीन ही हैं, क्योंकि महावीर के
समकालीन अजातशत्रु का नाम निर्देश इनमें उपलब्ध हैं। बृहदा. 2/15-17 4. गीता अध्याय 3 श्लोक 27 5. गीता अध्याय 2 श्लोक 21 6. अंगुत्तरनिकाय का छक्कनिपात सुत्त तथा भगवान् बुद्ध, पृ. 185 धर्मानन्द कौशाम्बी 7. गोशातक की छः आध्यात्मिक विकास की भूमिकाएँ हैं - 1. कृष्ण, 2. नीत् 3. लोहित
4. हरित 5. शुक्ल 6. परमशुक्ल तुलनीय जैनों का लेश्या सिद्धान्त - 1. कृष्ण 2. नील 3. कपोत 4. तेज 5. पद्म 6. शुक्ल (विचारणीय तथ्य यह है कि गोशातक के अनुसार निर्ग्रन्थ साधु तीसरे लोहित नामक
वर्ग में है, जबकि जैन धारणा भी उसे तेजो लेश्या (लोहित) वर्ग का साधन मानती है।) 8. छन्दोग्य उपनिषद् 3/14/3
बृद्धारण्यक 5/6/1
कठोपनिषद् 2/4/12 9. गीता : अध्याय 2 श्लोक
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान