Book Title: Jain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Author(s): Sagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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और संयम-दोनों का होना आवश्यक है और वह केवल उन्हीं में संभव है, जो समनस्क हैं। यहाँ जैविक आधार पर भी आत्मा के वर्गीकरण पर विचार अपेक्षित है, क्योंकि जैन-धर्म का अहिंसा-सिद्धांत बहुत कुछ इसी पर निर्भर है। जैविक आधार पर जीवों (प्राणियों) का वर्गीकरण
जैन-दर्शन के अनुसार जैविक आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण निम्न तालिका से स्पष्ट हो सकता है -
जीव
त्रस
स्थावर
पृथ्वीकाय अप्काय तेजस्काय वायु वनस्पति
पंचेन्द्रिय चतुरिन्द्रिय त्रीन्द्रिय द्वीन्द्रिय
जैविक दृष्टि से जैन-परम्परा में दस प्राण-शक्तियाँ मानी गयी हैं। स्थावर एकेन्द्रिय जीवों में चार शक्तियाँ होती हैं- 1. स्पर्शअनुभव शक्ति, 2. शारीरिक शक्ति, 3. जीवन(आयु) शक्ति और 4. श्वसन-शक्ति। द्वीन्द्रिय जीवों में इन चार शक्तियों के अतिरिक्त स्वाद और वाणी की शक्ति भी होती है। त्रीन्द्रिय जीवों में सूंघने की शक्ति भी होती है। चतुरिन्द्रिय जीवों में इन छह शक्तियों के अतिरिक्त देखने की सामर्थ्य भी होती है। पंचेन्द्रिय अमनस्क जीवों में इन आठ शक्तियों के साथ-साथ श्रवण शक्ति भी होती है और समनस्क पंचेन्द्रिय जीवों में इनके अतिरिक्त मनःशक्ति भी होती है। इस प्रकार, जैन-दर्शन में कुल दस जैविक शक्तियाँ या प्राण-शक्तियाँ मानी गयी हैं। हिंसा-अहिंसा के अल्पत्व और बहुत्व आदि का विचार इन्हीं जैविक शक्तियों की दृष्टि से किया जाता है। जितनी अधिक प्राणशक्तियों से युक्त प्राणी की हिंसा की जाती है, वह उतनी ही भयंकर समझी जाती है। गतियों के आधार पर जीवों का वर्गीकरण
जैन-परम्परा में गतियों के आधार पर जीव चार प्रकार के माने गए हैं1. देव, 2. मनुष्य, पशु (तिर्यक) और 4. नारक। जहाँ तक शक्ति और क्षमता का प्रश्न है, देव का स्थान मनुष्य से ऊँचा माना गया है, लेकिन जहाँ तक आध्यात्मिक साधना की बात है, जैन-परम्परा मनुष्य-जन्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानती है। उसके अनुसार, मानव-जीवन ही ऐसा जीवन है, जिससे मुक्ति या नैतिक पूर्णता प्राप्त की
जैन तत्त्वदर्शन