Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
चम्पानगरी - जैनागमों में चम्पानगरी का अनेक स्थानों पर उल्लेख हुआ है। भगवान् महावीर स्वामी का वहाँ अनेक बार पदार्पण हुआ। उन्होंने तीन चातुर्मास भी वहाँ किये, जो क्रमशः ५६७, ५५८, ५४४ ईसा पूर्व हुए।
स्थानांग सूत्र में चम्पानगरी का दस महानगरियों में उल्लेख है। बारहवें तीर्थंकर भगवान् वासुपूज्य का जन्म इस नगरी में हुआ था। आचार्य शय्यंभव ने अपने पुत्र बालमुनि मनक का स्वल्प आयुष्य जान कर, उसके लिए दशवैकालिक सूत्र की यहीं पर रचना की।
बौद्ध ग्रंथों में भी चम्पा नगरी का अनेक स्थानों में वर्णन आया है। तदनुसार चम्पा एक विशाल नगरी थी। तथागत बुद्ध का भी इस नगरी में अनेक बार आगमन हुआ। अतएव उत्तरवर्ती काल में बौद्धों का इसके प्रति बड़ा आकर्षण रहा। फाह्यान आदि चीनी बौद्ध यात्री अपनी भारत-यात्रा के समय यहाँ भी आते रहे। उन्होंने अपने यात्रा-विवरण में उसकी विशालता
और सन्दरता का वर्णन किया है. यह नगरी अपने समय में बहत रमणीय थी। यहां व्यापार का बड़ा केन्द्र था। दूर-दूर के व्यापारी यहां माल खरीदने आते थे। यहाँ के व्यापारी भी अपना माल बेचने के लिए मिथिला, अहिच्छत्रा आदि स्थानों पर जाते थे। चम्पा अंगदेश की राजधानी थी। अथर्व वेद०, गोपथ ब्राह्मण एवं पाणिनीय अष्टाध्यायी आदि में अंग देश का उल्लेख मिलता है।
महाभारत में भी अंगदेश का कई प्रसंगों पर उल्लेख है। एक बार द्रोणाचार्य के शिष्योंकौरव-पांडव आदि कई राजकुमारों के शस्त्र-कौशल, रण-कौशल के परीक्षण हेतु एक प्रतियोगिता का आयोजन था। अर्जुन ने वहाँ धनुर्विद्या में अपने आपको सर्वोत्तम सिद्ध किया। उसे चुनौती देने हेतु कर्ण उपस्थित हुआ। कर्ण को जब अराजकुलोत्पन्न कह कर प्रतियोगिता में भाग लेने के अयोग्य कहा गया, तब दुर्योधन ने वहीं पर उसे अंग देश का राजा घोषित करते हुए, उसका राज्याभिषेक किया।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार कनिंघम के अनुसार भागलपुर (बिहार) के आस-पास चम्पा की स्थिति मानी जाती है।
प्रथम उपांग औपपातिक सूत्र में चम्पानगरी का विस्तृत वर्णन हुआ है। उससे भारत की प्राचीन वास्तु कला का परिचय प्राप्त होता है। प्राचीन काल में नगरों का निर्माण किस प्रकार
. अथर्व वेद-५-२२-१४ अष्टाध्यायी-४-१-१७० * गोपथ ब्राह्मण-२-६
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