Book Title: Gahakoso Part 2
Author(s): Madhav Vasudev Patvardhan, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 126
________________ धोयं व चित्त नइपू र सच्छ न कुणंत च्चिय नक्खन ऊहेसु नक्खु क्खुडियं गुणेहि हीर नच्चण सलाहणा न छिवइ नयणभंतर न यदि नवपल्लवं नववहुपिम्म न विणा सम्भावे न वि तह अइ न वि तह अणा न वि तह छेय न वि तह दूमेइ न वि तह पढम न वि तह विएस नंदंतु सुरय नासं व सा निकम्माहि वि निक्किव जाया नकदुरारोहं निद्दाभंगो निद्दालसपरि निप्पच्छिमाइँ निप्पन्न सस्स नियपक्खारोविय निययाणुमाण निर्वाडिहिसि निव्वत्तरया नियसिप्प Jain Education International ५१२ ४७ २४ ६८५ २७१ २४९ १२५ ४८८ ३४८ ३२५ ६९३ ५७१ १३१ २३५ ५०९ ३२० २२३ ६६९ १५६ ७८ ३५७ ९८ ३६९ २८ ४६९ ३२८ ३४९ ११२ ६२९ ४३९ २९४ ६०७ ३५६ ५७८ 97 नीयाइँ अज्ज नीलुप्पलपरि नीससिउक्कंप नूणं हियय मंति नेउरकोडि नेच्छइ पासा नोहलियमप्पणो न्हाण हद्दी पइपुरउ च्चिय जुवाणो पच्चग्गुव्विल्ल पच्चू हमऊहा पज्जा लिऊण पsिaक्ख पढमं चिय पढमं वामण पण कुविया पत्तणियंब पत्तिय न पत्तो छणो पप्फुल्लघर परिओस परिभू एण परिमलिय परिय पिए पसुवणो पहरवण पहिउल्लूरण पहियवहू पंकमइलेण पंजरयसारियं पाणउडीए पाणिग्गहणि For Private & Personal Use Only २६८ ४९१ ३११ २८७ ९३ २९ १५१ ५ ८२ १८३ १४२ ५८१ ४४५ ६४४ २०८ ६५३ ४२६ २५ ५९४ १६२ ७१ ६८० २९० ३३४ ४२८ ३९७ ३१ ३६८ ४९९ ४३१ ५७९ १७३ ७० www.jainelibrary.org

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