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पचपरमष्ठा-पूजा ॥ अथ बीजी सिद्धपद पूजा ||
॥दोहा॥ दूजी पूजा सिद्धकी, करो भविक गुणवत । ध्वजा चढावो भावसु, लाल वरण मतिवंत ॥ गुण इकतीस विराजता, तीन लोक सिर छत्र । अनंत चतुष्टय धारता, जगजीवन जगमित्र ।।
॥ ढाल॥ चाल-भवि पनरम पद गुण गाना हो भवि सिद्धपदके गुण गाना हो ॥ भ० ॥ पनरे मेदे सिद्ध विराजै, भवि तुम चित्तमे लाना हो ॥ भ० सि० ॥ जिन जिन तीरथ अतीरथ कहीये, अन्य सलिंग कहाना हो || म० सि० ॥ १ ॥ स्त्री पुरुषादिक लिंगे नाये, कृत्य नपुंसक गाना हो । भ० सि० ॥ प्रत्येकयुद्ध ने सह संबुद्धा, युद्ध नोधित सुप्रमाना हो ॥ म० मि० ॥२॥ एक अनेक कह्या एक समये, गुरु मुसथो शुद्ध पाना हो ॥ भ० सि०॥ अष्ट सिद्धि नवनिधिके दाता, तुम हो देव निधाना हो || भ० सि० ॥ ३ ॥ सादी अनंत तुम सुखके भोगी, जोगीसर लय लाना हो । भ० सि० ॥ शन्द रूप रस गध फरस, जीत भए मुनि