________________
गोत्र कर्म निवारण पूजा ४५६ काटो या पालो भले, चन्दन भरे सुगंध । चन्दन गुण अद्भुत वरो, प्रभु पूजा सम्बन्ध ||२||
(तर्ज दयानिध दीजें यह वरदान बनासिरि)
चन्दन पूज विचार करिये चन्दन सम आचार ॥ टेर ॥ जीते मरते उभय समय मे, सदा सुगन्ध प्रचार ।। क० ॥१॥ सग कुसंगी आन मिलो पर विप का हो न विकार ||क० ॥ २॥ धर्म-सुगन्धी जीवन पावन, उंच गोत्र अवतार ॥ क० ॥ ३ ॥ पत्थर सग रगड पाकर भी, चन्दन शीतल सार ॥ क० ॥ ४ ॥ पीसो घीसो चन्दन को पर, होगा रस विस्तार ॥ क० ॥ ५ ॥ गुण धारी चन्दन पाता है, प्रभुपद का अधिकार ॥ क० ॥ ६ ॥ सुख में दुख में सम रस अपना, नित जीवन निर्धार ।। क० ॥७॥ हरि कवीन्द्र सुचन्दन पूजा, भाव धरम दातार । फ० ॥ ८॥
॥ काव्यम् ॥ पापोपताप शमनाय महद्गुणाय० ।
मंत्र-ॐ ही श्री अर्ह परमात्मने "गोत्र कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय चन्दनं यजामहे स्वाहा ।