Book Title: Bruhat Pooja Sangraha
Author(s): Vichakshanashreeji
Publisher: Gyanchand Lunavat

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Page 472
________________ ४८० वृहत् पूजा-संग्रह जायणा ॥ टेर ॥ साधु सताये जीव दुखाये, दुनिया में झूठे जाल रचाये । घोर विधन बन जायगा ॥ हां प्रभु० ॥१॥ हँस हँस के बांधेकरमों की बाधा। होगी उदय जब काल अबाधा । रोने से छूट नहीं जायगा ॥ हां प्रभु० ॥ २॥ हिंसा तजो तजो झूठ ओ चोरी, विषय तजो तजो ममता की मोरी । जीवन सफल हो जायगा ॥ हां प्रभु० ॥ ३ ॥ कुमति कुटिल हुसंग न करना, ज्ञानी गुरु सुतसंग विचरना। जीवन जंग जीत जायगा ॥ हां प्रभु० ॥ ४ ॥ अन्तराय यह कर्म अनादि, परंपरा हरे आतम आजादी। दर्शन करो हट जायगा । हां प्रभु० ॥ ५॥ प्रभु दर्शन दूर आप भगाता, प्रभु वन्दन वर वांछित विधाता। पूजन शिवफल पायगा ॥ हां प्रभु० ॥ ६ ॥ सुखों के सागर भगवान स्वामी, हरि पूज्य प्रभु अन्तरयामी । कर पूजा तु पूज्य बन जायगा ॥ हां प्रभु० ॥ ७ ॥ दिव्य कवीन्द्र प्रभु चरण शरण से, मुक्ति मिलेगी जन्म मरण से। परमात्म पद प्रकटायगा ॥ हां प्रभु० ॥८॥ ॥ काव्यम् ।। पीयूष पेशल रसोत्तम भावपूर्णैः । मन्त्र-ॐ हीं श्रीं अहं परमात्मने 'अन्तराय कर्म समृलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा ।

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