Book Title: Bruhat Pooja Sangraha
Author(s): Vichakshanashreeji
Publisher: Gyanchand Lunavat

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Page 473
________________ अन्तराय कर्म निवारण पूना कलश ॥ ॥दोहा ।। समय समय में होत है, सात करम का बन्ध । आयु सहित हो आठ का, बन्ध दुःख अनुबन्ध ॥१॥ आठ करम कटते प्रकट, आतम गुण हो आठ । कर्म चूर तप कर वरो, आठ सिद्धि के ठाठ ॥२॥ (तर्जगायो गायो रे, महावीर जिनेश्वर गायो) पायो पायो रे, धन 'शाशन जैन सपायो । टेर ।। शासनपति श्रीवीर जिनेश्वर, श्रीमुख से फरमायो । कर्म निवारण आत्म आठ गुण, यथाशक्ति तप ठायो रे ॥धन० ॥१॥प्रवचन सारोद्धार आचारे, सुविहित विधि समझायो । तप उद्यापन उत्सव पूजा, प्रमावना मन लायो रे ।। धन० ॥२॥ खरतर गण नायक सुस सागर, श्रीभगवान सुहायो। जिनहरिसागर सद्गुरु शरणे, गुरुगम गोध बढायो रे ॥ धन० ॥ ३ ॥ वर्तमान जिनभानन्दसागर, परीघर सुखदायो । आज्ञा रंगे भाव उमगे, परमातम गुण गायो रे ॥ धन० । ४ ॥ पास फलोदी गुरु' तीरथ में चौमासो घिर ठायो। दो हजार

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