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गोत्र कर्म निवारण पूजा ४६५ जिन दर्शन विरहित हो उसका, जीना मरना भार होता ॥ अक्षय० ॥ ६ ॥ नीच गोत्र के संस्कारों से, दुख मय यह संसार होता ॥ अक्षय० ॥ ७ ॥ हरि कवीन्द्र तिरना हो उन को, जिन दर्शन आधार होता ॥ अक्षय० ॥ ८॥
॥ काव्यम् ॥ कृत्वाऽक्षतः सुपरिणाम गुणः प्रशस्तं० ।
मन्त्र--ॐ ही श्री अहं परमात्मने - 'गोर कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय अक्षत यजामहे स्वाहा । ___॥ सप्तम नैवेद्य पूजा ॥
॥दोहा॥ आहारक तेरह कहे, गुणठाण भगवान । औदारिक पुद्गल ग्रहण, है आहार विधान ॥२॥ नवेद्य पुद्गल रूप है, प्रभु चरणे दो चाद। ।
सागभार परिणाम गुण, अनाहार हो गाढ़ा (तर्ज-अब तो प्रमुजी का लेलो शरन-राग भैरवी)
नैवेद्य पूजा अति आनन्द || म०|| टेर ॥ आवम अर्पण प्रसु चरणों में, पूजा काटे कम्मों का फद ।। न० ॥१॥ पुद्गल ग्रहणे नीच गोर का, दो गुण ठाणे वक हो पंध ॥ ३० ॥ २ ॥ उदय पांच तक ही होता है, होता है भारी दुर द्वन्द ।। न० ॥ ३ ॥ प्रभु पर मंगति होते होगा, संघ