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वृहत् पूजा-संग्रह भोगी निश्चय, हो जाता भगवान । प्रभु पूजा में पुद्गल त्यागो, पाओ आतम ज्ञान ॥ क० ॥ ६॥ भोग और उपभोगों से जो, रहते सदा उदास । जनम मरण कल्याण उन्हीं का, जगदीपक प्रकाश ॥क० ॥ ७॥ जग दोपक जिनदेव चरण में, दीपक पूजा एह । हरि कवीन्द्र परमातम ज्योति, दीपित होवे देह ॥ २० ॥ ८॥
॥ काव्यम् ॥ सम्पूर्ण सिद्धि शिव मार्ग सुदर्शनाय० ।
मन्त्र-ॐ हीं श्रीं अहं परमात्मने अन्तराय कर्म समूलोच्छदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय दीपकं यजामहे स्वाहा ।
॥ षष्ठम अक्षत पूजा ॥
॥दोहा॥ अक्षत स्वस्तिक साधना, चार गति दे चूर । रत्न त्रय विस्तार से, हो शिव सुख भरपूर ॥१॥ अक्षत पद प्रभु पूजते, वीर्य विधन हो दूर।
सरल समुज्जवल भावसे, चमके आतम नूर ॥२॥ (तर्ज-सुणो चन्दाजी सीमन्धर परमातम पासे जावजो) ___ हो आतमजी परमातम पूजा नित कीजै भाव से ॥ टेर ॥ जो है अक्षत पद अविनाशी, शाश्वत सुख शिवपुर