SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७६ वृहत् पूजा-संग्रह भोगी निश्चय, हो जाता भगवान । प्रभु पूजा में पुद्गल त्यागो, पाओ आतम ज्ञान ॥ क० ॥ ६॥ भोग और उपभोगों से जो, रहते सदा उदास । जनम मरण कल्याण उन्हीं का, जगदीपक प्रकाश ॥क० ॥ ७॥ जग दोपक जिनदेव चरण में, दीपक पूजा एह । हरि कवीन्द्र परमातम ज्योति, दीपित होवे देह ॥ २० ॥ ८॥ ॥ काव्यम् ॥ सम्पूर्ण सिद्धि शिव मार्ग सुदर्शनाय० । मन्त्र-ॐ हीं श्रीं अहं परमात्मने अन्तराय कर्म समूलोच्छदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय दीपकं यजामहे स्वाहा । ॥ षष्ठम अक्षत पूजा ॥ ॥दोहा॥ अक्षत स्वस्तिक साधना, चार गति दे चूर । रत्न त्रय विस्तार से, हो शिव सुख भरपूर ॥१॥ अक्षत पद प्रभु पूजते, वीर्य विधन हो दूर। सरल समुज्जवल भावसे, चमके आतम नूर ॥२॥ (तर्ज-सुणो चन्दाजी सीमन्धर परमातम पासे जावजो) ___ हो आतमजी परमातम पूजा नित कीजै भाव से ॥ टेर ॥ जो है अक्षत पद अविनाशी, शाश्वत सुख शिवपुर
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy