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दर्शनावरणीय कर्म निवारण पूजा ३६१ के गुण गाये । रसोदय आत्म सुख पाये, घड़ी धन भाग वह जानो । मि० ॥ ८ ॥
|| काव्यम् ॥ लोकैपणति तृष्णोदयवारणाय.
मन-ॐ ह्रीं अहं परमात्मने "दर्शनावरणीय कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्रायजल यजामहे स्वाहा । ॥ द्वितीय चन्दन पूजा ॥
॥दोहा॥ आतम दर्शन आवरण, क्षय उपशम हो भाव । जो प्रभुपद दर्शन करें, प्रकटे पुण्य प्रभाव ॥ १॥ प्रभु दर्शन चन्दन रसे, अर्चित चर्चित रूप । पाप ताप मिट जाय हो, जीवन शान्त सरूप ॥२॥
(तर्ज-सदा भजो ब्रह्मचारी में वारिजाउ) प्रभु दर्शन सुखकारा मैं वारिजाउंपा धन अवतारा ।। टेर || वावना चन्दन शीतल रगामी, पाप ताप दुस हारा मैं पारिजाउँ पाप० । चन्दन पूजा विधि आराधन, जिन आगम अनुमारा मैं वारिजाउ जिन० ॥ ३० ॥१॥ प्रभ द्वपी अपलापी घाती, वैरविधन आधारा मैं वारिजाउं वैर० । आसावन कर्ता को आश्रय, होता है दुख भारा मैं वारिजाउ होता० ॥ ७० ॥ २ ॥ आश्रम बन्ध हेतु होने