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मोहनीय कर्म निवारण पूजा ४४ अप्रत्याख्यानी तजो, चार कपाय विशेष । धारो प्रत्याख्यान को, सेमो देव जिनेश ॥२॥
(तर्ज जिन गुण गावत सुर सुन्दरी०) प्रभु दर्शन दुख दूर करे, दर्शन सुख भर पूर भरे ॥ प्र० ॥ टेर ।। फूल से पूजा श्री जिनवर की, फूल विकास विकास करे। चार कपाय अप्रत्याख्यानी, पुरुषारथ से दूर टरे । प्र० ॥ १॥ पृथिवी रेणा क्रोध कहा है, अस्थी सम है मान अरे। माया मेड सीग के जैसी, लोभ मुकढम रंग भरे । प्र० ॥ २ ॥ तियच गति मति कारण है ये, चतुर न इनको चित्त घरे। जीव विपाकी पाती मारे, जीव विवेकी मेद करें ।। प्र० ॥ ३ ॥ बंघ उदय पाये नमें गुण, थानक सत्ता अन्त करे। वह धन दिन अरसर यह होगा, अपायी हो हम विचरे ।। प्र० ॥ ४ ॥ ये कपाय अप्रत्याख्यानी, बारमास में निपत टरें। प्रति भामण सवत्सर यातें, जीवन पावन भाव भरे ॥३०॥५॥ अप्रत्यारयानी गुण ठाणे, अविरत सम्यग्दृष्टि घरे। मुरनर पदि सविशेष रूप से, प्रक्ष पूजा कर पाप हरे । प्र० ॥६॥ अप्रत्यारवानी प्रकृति ये, सघाति चति याते डरे। प्रभु पजा पर प्रससे सविनय, बसपापी घर दान बरे ॥प्र.