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वृहत् पूजा-संग्रह
को दूर करने को, करो फल पूज जिनवर की ॥ च० ||७|| अमर गणनाथ हरि पूजें, कवीन्द्र कीर्तियाँ गावें । सफल यश कीर्ति पाने को, करो फल पूज जिनवर की ॥
च० ॥ ८ ॥
|| काव्यम् || पीयूष पेशल रसोत्तम भाव पूर्णैः ० । मन्त्र — ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह परमात्मने आयुष्य कर्म समृलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा ।
॥ कलश ॥
[ आठवें दिन की पूजा ( अन्तराय कर्म निवारण पूजा ) के अन्त में प्रकाशित कलश बोलें । ]
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