Book Title: Bruhat Pooja Sangraha
Author(s): Vichakshanashreeji
Publisher: Gyanchand Lunavat

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Page 445
________________ नाम कर्म निवारण पूजा भागी भूख । विग्रह गति पाई बहुत, पर नहीं प्रभु पूजो नैवेद्य से, मांगो मे दुःख ॥ २ ॥ ४५३ ( तर्ज- तीरथनी आसातना नवि करिये ० ) वीतराग जिननाथजी जयकारी । हांरे जयकारी जी उपकारी, हांरे शिवपुर वर पन्थ विहारी, हाँरे कर दो भव पार || वी० ॥ ढेर || महर नजर करो नाथ जी हम आये, हांरे पूरव कृत कर्म सताये । हांरे अब चरण शरण लय लाये, हारे नही ओर आधार || वी० ॥ १ ॥ नैवेद्य चरणों में घरें प्रभु तेरे, हारे रहे भूस हमें नित घेरे । हांरे देती लाख चौरासी फेरे, हांरे पद दो अनाहार || वी० ॥ २ ॥ वीस कोडा कोडि सागर स्थिति बोली, हांरे उत्कृष्टे भावे बोली । हांरे लघु अन्तर मुहुरत सोली, हांरे नाम कर्म विचार || वी० ॥ ३ ॥ मनमें कुटिलता धारते जो प्राणी, हांरे बोलें कपट भरी जो वाणी । हांरे काय चेष्टा शठता निशानी, हांरे आश्रत्र संसार ॥ वी० ॥ ४ ॥ अशुभ नाम आता सही दुसकारी, हांरे विपरीत है शुभ सुखकारी | हारे हेय अशुभ विशेष प्रकारी, हांरे ससार आसार || वी० ॥ ५ ॥ अशुभ नाम करमोदये नही पाया, हांरे वीतराग प्रभु जिन राया। हांरे नहीं पाया मोक्ष

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