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नाम कर्म निवारण पूजा ४५ सलोना ॥ टेर ॥ पुण्य प्रथम विधि पूज्य की रे, पूजा विविध प्रकार ॥ स०॥ करना सुख भरना सदा रे, निज आतम भण्डार || स० सु० ॥ १ ॥ नाम करम ध्रुव वन्ध मे रे, वर्ण गन्ध रस स्पर्श ॥ स० ॥ तैजस कार्मण जानिये रे, प्रभु पूजा उत्कर्प ।। स० सु० ॥ २॥ अगुरु लघु निर्माण के रे, साथ रहे उपधात ॥ स० ॥ सावधान साधे सदा रे, माधक पुण्य प्रभात || स० सु० ॥ ३ ॥ अध्र व बन्धी नाम में रे, औदारिक क्रिय ॥ स० ॥ आहारक उपांग भी रे, वे तीनों सक्रिय ॥ स० सु० ॥ ४ ॥ सस्थान संघयणे कही रे, छह छह मेद विचार ॥ स०॥ पाँच जाती गति चार ये रे, दोय विहाय प्रकार || स० ॥ ५ ॥ चार आनुपूर्वी तथा रे, श्री तीर्थकर नाम ॥ स० ॥ सांसोभासे कीजिये रे, परमातम गुण ग्राम ॥ स० सु० ॥६॥ध्रुव उदयी अध्र वोदयी रे, गुरुगम बोध विशेष ॥ स०। प्रकृति स्थिति रसपातसे रे, मेटो करम कलेश ॥ स० सु०॥७॥ सुस सागर भगवान को रे, पूजो सफल विधान ॥ स० ॥ हरि कवीन्द्र सदा बनो रे, त्रिभुवन तिलक समान ॥ स० सु० ॥८॥