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वृहत् पूजा-संग्रह
दीपक जैसे संज्वलित, संज्वलनात्म कषाय । अविवेकी जन जल मरे, ज्ञानी जन शिव जाय ||२||
(तर्ज- पंछी बावरिया )
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दर्शन दीपक द्वारा, पाये प्रभु सांवरिया । मिध्या तम मिट जाये, पाये प्रभु सांवरिया || ढेर || दीपक संज्वलनात्म कषाये, आतम परमातम लय लाये । भव सागर संतरिया | पाये ० || १ || बंध उदय सत्ता रहती है, अनिवृत्ति परिणति बहती है । क्षपक श्रेणि संचरिया ॥ पाये० ॥ २ ॥ जल रेखा सम क्रोध मान है, नेत्र लता माया वितान है । अवले ही अनुसरिया || पाये० || ३ || हल्दी रंग सा लोभ खपाया, दश गुण ठाणे संपराया । क्षायिक भाव विचरिया ॥ पाये० ॥ ४ ॥ पन्द्रह दिन तक रहता आगे, वैमानिक गति होती सागे । यथाख्यात आवरिया || पाये० || ५ || चार चार की ये चौकड़ियाँ, गुण विकास में हैं हथकड़ियाँ । कार्टे आतम गुण दरिया || पाये० || ६ || प्रभु आगम दीपक की ज्योति, जो जीवन में सन्मुख होती। शिवपुर पंथ विहरिया || पाये० ॥ ७ ॥ हरि कवीन्द्र दीपक पूजा से,