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वृहत् पूजा-संग्रह तीरथ तारण हार । तीरथ पति के तीर्थ में, मेटो मोह विकार ॥ कवीन्द्र करते जय जय कार, तीरथ से नित तिरनाजी नित तिरला । यो० ॥ ८ ॥
॥ काव्यम् ।। पीयूष पेशल रसोत्तम भावपूर्णैः ।
मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं अहं परमात्मने 'मोहनीय कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा ।
॥ कलश ॥ [आठवें दिन की पूजा ( अन्तराय कर्म निवारण पूजा ) के अन्त में प्रकाशित कलश बोलें।]