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आयुष्य कर्म निवारण पूजा ४३६ जल धारा। पूजन जन कीरतियाँ गावे, हरि कवीन्द्र जयकारा ॥ आतम० ॥ ८॥
॥ काव्यम् ॥ लोकैपणाति तृष्णोदय वारणाय० ।
मन्त्र-ॐ हीं श्रीं अहं परमात्मने ' आयुष्य कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय जल यजामहे स्वाहा ।
॥ द्वितीय चन्दन पूजा ॥
॥दोहा॥ भागति आयुप योग ते, हो जाती है कैद । प्रभु पूजो प्रभु आप हैं, इसी रोग के वैद ॥१॥ आधि व्याधि उपाधि के, त्रिविध ताप सन्ताप । प्रभु पूजा से हों नहीं, प्रभु पूजो अम आप ॥२॥ (तर्ज-म्हारो कागसियो पणिहार्या ले गई रे०)
पूजो चन्दन से, भव फन्द सभी कट जाय ॥ पूजो० ॥ टेर ॥ प्रभु चन्दन अनुरूप हैं, प्रमु तीन भुरन सिर भूप ॥ पूजो० ॥ आतम गुण उपयोग से, प्रभु दूर करें भर कूप ।। पूजो० ॥ १ ॥ अध्रुव बन्ध उदय सत्ता में, आयु कर्म सरूप ॥ पूजो० ॥ कैद रूप फाटो इसे, पद पायो आप अनूप ॥ पूजो० ॥ २॥ जीना मरना ये सभी है, आयुप के अधिकार ॥ पूजो० ॥ चाहो ज्यों होता नहीं,