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बृहत् पूजा-संग्रह (तर्ज-अवधू सो योगी गुरु मेरा) प्रभु पूजा अधिकारे आतम निज प्रभुता प्रकटावे ॥ टेर॥ कर्म महामल प्रति पल लगता, जल पूजा वह जावे । निर्मलता पाई प्रभुताई, शाश्वत निज सुख पावे ॥ आतम० ॥ १ ॥ जड़ चेतन दोनों की होती, स्थिति आयुष्य कहावे । आयु कर्म अघाती होता, चारगति पहुँचावे ॥ आतम० ॥२॥ समय समय में कारण योगे, सात करम बँधते हैं। ओधे काल अवाधा उदये, सुख दुख फल सँधते हैं | आतम० ॥३॥ जीवन के तीजे हिस्से जब, आयु कर्म उपाये। उसी समय में आठ करम का, बन्ध गुरु समभावें ॥ आतम० ॥ ४ ॥ आगामी भव आयुष्य बंधता, प्रति भव बस इकवारा । प्रायः पर्वतिथि में याते, धर्म करो सुखकारा ।। आतम० ॥५॥ भव भव में यों आयुष्य प्रकृति, हथकड़ियाँ पड़ती हैं। काटो इन को शिवपुर जाते, जो आड़ी अड़ती है ॥ आतम० ॥६॥ प्रति भव आयुष्य कम भोगते, काल अनन्त गमाया । प्रभु आगम जीवन अधिगम से, करम मरम समझाया ॥ आतम० ॥ ७॥ सुखसागर भगवान 'प्रभु 'पद, द्रव्य भाव