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आयुष्य कर्म निवारण पूजा ४३५ काइ उदय समय दुख दौर | भ० ॥ ३॥ दशविध होती वेदना काइ सुनते दुःस अपार । भोग समय हो क्या गति काइ जाने जगदाधार ॥ भ० ॥ ४ ॥ असुर निकायी देवता कांड पनरह परमाधाम । दुस देते जो भोगते कांइ वचन अगोचर ठाम || भ० ॥ ५ ॥ तिर्यंचायु को कहा काइ पुण्य रूप भगवान । पर बॅधता है पाप से कांइ होता दुःख की सान ॥ म० ॥ ६ ॥ प्रथम भूमि नोगोद की कांड, जीव अनन्तानन्त । व्यवहाराव्यवहारसे काइ मासे श्री भगमत || म० ॥ ७ ॥ एक शरीरे एकठा कांड भोगें दुःख अनन्त । हरि कवीन्द्र ज्ञानी करें कांइ उन दुःखों का अन्त ॥ भ० ॥ ८ ॥ __|| काव्यम् ॥ स्फूर्जत्सुगन्ध विधिनोर्ध्वगति प्रयाणे० ।
मन्त्र -ॐ हीं श्रीं अई परमात्मने "आयुष्य कर्म समूलीच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय धूपं यजामहे स्वाहा ।
॥ पंचम दीपक पूजा ॥
____॥दोहा॥ प्रभु दीपक पूजा करो, प्रकटे दीपक ज्ञान । भार अन्धेश ना रहे, जानो नकल जहान ॥१॥