________________
आयुष्य कर्म निवारण पूजा
॥ सप्तम नैवेद्य पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
जड कर्मों के जोग से, भारी लगती भूख । मिट मिट कर भी ना मिटी, यही यहाँ है दुःख ||१||
४३६
खड्डा पापी पेट का, भर जाये यह भाव । नैवद्य घर सांगु मधुर, दो प्रभु यही स्वभाव || २ || (तर्ज- हो उमराव बारी चोली प्यारी लागे महाराज ) हो परमात्मा की पूजा प्यारी लागे साधिकार । हो नैवेद्य पूजा करते जन हो जायें निर्विकार || टेर || ससारी सविकार है, चार गति विस्तार। जनम भरण कर कर थर्के, दीसे अंत न पार | हो परमात्मा के पद कमलों मे होगा बेडा पार || हो पर० ॥ १ । दुर्लभ नर भव पा लिया, चिन्तामणि अनमोल | प्रभु सेवा परिणत करो, सद्गुरुओं का चोल । हो आराधना मे अपनी शक्ति लगाओ चार चार || हो पर० ॥ २ ॥ साधन पूरे ना मिलें, ना शिव सिद्धि होय । वो भी प्रभु पद पूजते, निश्चय सुरगति होय । दो सुर लोक मे भी शासत श्री जिन पूजा अधिकार || ही पर० || ३ || जिन कल्याणक उन्मवे, विविध भक्ति चितधार । मेरु नन्दीश्वर करें, मुर जिन पूजा सार ।