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__ मोहनीय कर्म निवारण पूजा ४२३ ज्ञान चरण गुण दिव्य उजासे । परमातम अनुसरिया ॥ पाये० ॥ ८॥
॥ काव्यम् ॥ सम्पूर्ण सिद्धि शिवमार्ग सुदर्शनाय० ।
मन्त्र-ॐ हीं श्रीं अहं परमात्मने "मोहनीय कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय दीपकं यजामहे स्वाहा।
॥ षष्ठम भक्षत पूजा ॥
॥ दोहा ॥ अक्षत गुण धारी प्रस, अक्षत आगे धार । पूजा अक्षत भाव से, करो सुघर नर नार ॥१॥ अक्षत भरता पेट को, मिटती भूख अपार । गुण अक्षत आतम भरे, मेटे भव गति चार ॥२॥ (तर्ज-माला काटे रे जाला जीव का तन मन से फेरो)
अक्षय पद पावो, अक्षत प्रभु पूजो भविजन भाव से ॥ टेर ॥ कपाय सहचारी होते नन, नो कपाय जीवन में। दूर करो प्रभु पूजन करते, पूज्य बनो त्रिभुवन मे रे॥ अक्षय० ॥१॥ रोगमूल साँसी होती है, झगडे की जड हाँसी । करने वालों को लग जाती, मोह करम की फांसी रे ।। अक्षय० ॥२॥ जड़ अनुराग रति अरति वह, अप्रीति