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मोहनीय फर्म निवारण पूजा ४२१ है, मान काठ अनुरूप । माया हे गोमुत्रिका, संजन लोम सरूप रे ।। करम० ॥ ३ ॥ चार मास ये रह सके, अणुव्रत में अतिचार । नर मा कारण पाय के, झानी करते प्रहार रे ॥ करम० ॥ ४ ॥ ध्रुव सत्ता का ये रहें, नव गुण ठाणे नाश । क्षपक श्रेणिगत आवमा, पाता पुण्य प्रकाश रे ॥ करम० ॥ ५ ॥ साघु धर्म दशांग का, श्रावक धरते भाव । धूप दशांग सदा करें, आतम घूपन दाव रेकरम० ॥ ६ ॥ धूप घुओं ऊँचा चढ़े, चढ़े पुजारी आप । चरण शरण जिनराज की, लगी हृदय हो छाप रे । ॥ करम० ॥ ७ ॥ हरि कवीन्द्र जय जय करें, हो अमरापुर वास । धूप पूज प्रतिदिन करो, पाओ आरम विकास रे।। करम० ॥ ८॥
का-यम् ॥ रत्सुगन्धविधिनोग्रगति प्रयाणे० ।
मन्त्र-ॐ दी श्री अ६ परमात्मने ''मोहनीय कर्म ममूलोच्छेदाय श्रीगीर जिनेन्द्राय धूपं यजामहे स्वाहा ।
{ पंचम दीपक पूजा ॥
॥दोहा॥ प्र भाव प्रकाशमय, तन्मय दीपक धार । दप भाव पूजा करो, मिटे एदय वम वार ॥