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दर्शनावरणीय कर्म निवारण पूजा ३६७ दिव्य ज्ञान दर्शनमय होता, उपयोगी जीवन दुःख सोता। अधिक अधिक अधिकार, प्रभु को लाखों प्रणाम ।। जग० ॥ ६॥ सर्व द्रव्य प्रदेश अनन्ते, उनसे गुण पर्याय अनन्ते । ज्ञान अनन्तानन्त, प्रभुको लाखों प्रणाम ॥ जग० ॥ ७ ॥ सत्र द्रन्यों में आतम मुखिया, ज्ञान दरस गुण होता सुखिया। हरि कवीन्द्र नत भाव, प्रभु को लाखों प्रणाम || जग०॥ ८॥
॥ काव्यम् ॥ सम्पूर्ण सिद्धि शिवमार्ग सुदर्शनाया० ।
मन्त्र-ॐ ही अहं परमात्मने "दर्शनावरणीय कर्म समूलोच्छदाय श्री वीर जिनेन्द्राय दीपक यजामहे स्वाहा।
॥ षष्ठम अक्षत पूजा ॥
॥दोहा॥ अक्षत गुण स्वस्तिक रचो, चार गति हो चूर । प्रमु सन्मुस सस्तिक करो, भरोस्वस्ति गुणपूर ॥१॥ अक्षत उज्ज्वल सरलतम, भावों से भगवान । पूलो प्रणमो भविक जन, पावो पद कल्याण ॥२॥
(तर्ज-पछी वावरिया) प्रभु पूजो अविकारी, तिरो भर दुख दरिया । प्रभु शासन सुसकारी, वसो नर शिव पुरिया ॥ टेर ॥ चक्षु अचक्षु