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वेपनीय सर्ग निपाल पूजा ४०५ (गर्ग-राजार नियनों में पारर पमना)
होगा पार पार तू, प्रभु की सेवा कर भासे होगा पार पार तूं ॥टेर ॥ गुग्नर गति में मुखिपा हो, नारक तिरिम दुनिया हो । भूला ए गमार ॥प्रभु की०॥ १ ॥ मधु लिप्त सडग की धारा, साता व अनाताकारा | पाई मार मार तूं ॥ प्रमु को० ॥ २॥ मुर दाद माज के जमा, दुरा आग जलन के जैसा । अनुमर मार सार तूं । । प्रभु की० ॥३॥ मुसमें न फलते जाना, दुसमें न कमी घड़ाना । ममाधि धार धार तू ॥ प्रभु फी० ॥ ४॥ सम भार वीज विकसेगा, मुरझाया मन विहसेगा । नोड तार वार तूं ॥ प्रभु की० ॥ ५॥ वीरय जल फलशा भरके, प्रभु की पद पूजा करके । मन मल हार हार तूं ॥प्रभु की० ॥६॥ हे द्रन्य भाव का हेतु, मनसागर तारक सेतु । मन में धार धार तूं ॥ प्रभु की० ॥ ७ ॥ हरि कीन्द्र जय जय गाते, प्रभु पूजा ठाठ रचाते । मोचले बार बार तुं ॥ प्रभु० ॥ ८॥ " || काव्यम् ॥ लोऊपणातितृष्णोदय वारणाय० - "मन्त्र---ॐ परमात्मने '" वेदनीय
अजिल यजामहे
समृलोच्छेदीय .