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वेदनीय कर्म निवारण पूजा ॥ जो० ॥१॥ दुस को सुख माना संसारे, उसमें उलझे हो दुखियारे । चौरासी लख चक्कर मारा ॥ पूजो० ॥२॥ सुख में फूले भूले सामी, होकर केवल काम हरामी । जीवन में छाया अन्धियारा ॥ पूजो० ॥३॥ उपशम श्रेणि साता बधे, गिरना होता करम संबंधे। देव हुए जहँ भोग अपारा ।। पूजो० ॥ ४ ॥ सरवारथ सिद्ध हो देवा, आतम परमातम समरेवा । अनुपम उनका है अधिकारा ।। पूजो० ॥५॥ प्रभु गुण समरण कीर्तन करते, द्रव्य माव अरचन आचरते। अंत रूप उनका संसारा ॥ पूजो० ॥ ६॥ भव दुख को दुख जो नहीं माने, आतम परमातम पद ध्याने । उनका बजता विजय नगारा । पूजो० ॥७॥ हरि कवीन्द्र श्री प्रभु पद साधा, आतम सुस अब अन्यावाधा। अजर अमर पद हुआ हमारा ॥ पूजो० ॥८॥
| काव्यम् ॥ सम्पूर्ण सिद्धि शिवमार्ग सुदर्शनाया० ।
मन्त्र -ॐ ही अहं परमात्मने' · वेदनीय कर्म समूलीच्छेदाय श्री वीर जिनेन्द्राय दीपक यजामहे साहा।