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वृहत् पूजा-संग्रह
काय, ध्यान लय लाय रे || धू० ॥ ६ ॥ पुण्य सूत कात प्रभु पूज दिवस रात और
कात, बन्ध हो सदैव सात ।
देव लोक में अशोक,
कर न बात रे ॥ धू० ॥ ७ ॥ शाश्वत जिन धोक धोक । हरि कवीन्द्र लोक करें, कीर्ति
थोक थोक रे || धू० ॥ ८ ॥
॥ काव्यम् ॥ स्फूर्जन्सुगन्ध विधिनोर्ध्वगति प्रयाणैः० मन्त्र — ॐ ह्रीं अहं परमात्मने "वेदनीय कर्म समूलोच्छेदाय श्रीवीर जिनेन्द्राय पुष्पं यजामहे स्वाहा ।
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|| पंचम दीपक पूजा || ॥ दोहा ॥
जगदीपक परकाश में, पुण्य पाप का भेद । कर पाओ पाओ तभी, भेद रहे ना खेद ॥१॥ प्रभु सन्मुख दीपक धरो, भरो हृदय में जोत । अंधेरा मिट जायगा, होगा जग उद्योत || २ ||
(तर्ज - झण्डा ऊँचा रहे हमारा )
पूजो श्री जिन जय जयकारा, दीपक भाव भरो अविकारा || टेर || जग दीपक की ज्योति विचारा, भव सागर का मिला किनारा | झटपट होगा अव निसतारा