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वेदनीय कर्म निवारण पूजा
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॥ काव्यम् ॥ प्राज्याज्य निर्मित सुधामधुर प्रचारै० । मन्त्र - ॐ ह्रीं अर्ह परमात्मने " वेदनीय कर्म समूलोच्छेदाय श्री वीर जिनेन्द्राय नैवेद्य यजामहे स्वाहा ।
॥ अष्टम फल पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
करो अमरफल के लिये, फल पूजा विस्तार । मिटे असावा फल मिले, साता शिव अनुसार ॥१॥ फल चाहो फल को धरो, प्रभु पूजा में सास । क्रिया कार्य साधक कही, ज्ञान क्रिया शिववास ॥२॥
(तर्ज-माला काटे रे जाला जीव का )
पूजन कर पाओ, साता मुस पाओ मेरी आत्मा || ढेर || कर्म वेदनी सात असाता, प्रकृति उभय अघाती । चन्ध उदय अभ्रच जो होती, सता ध्रुव कहलाती रे ॥ पू० ॥ १ ॥ कोडा कोडी सागर तीसा, स्थिति उत्कृष्टी होती । क्षय करके जीवन अपने मे, प्रकटा दो गुण ज्योति रे ॥ पू० ॥ २ ॥ पुण्य रूप से साता होती, सुर नर मे अधिकाई । पाप असाता विरि नारक में, होती है दुखदाई रे ॥ पू० ॥ ३ ॥ सुरगति में शाश्वत जिन पूजो, जिन