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वृहत् पूजा-संग्रह
॥ पंचम दीपक पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
गुण दीपक प्रभु की सदा, दीपक ज्योति विधान । पूजा कर तमतोम को, मेटो चतुर सुजान ॥ १ ॥ प्रभु दर्शन ज्योति बिना, पथ नहीं पाया एक । दीपक पूजा आत्म-पथ, पाओ परस विवेक ||२|| (तर्ज- तुमको लाखों प्रणाम )
जगदीपक जिनराज प्रभु को लाखों प्रणाम । करूं सुदीपक धार प्रभु को लाखों प्रणाम || ढेर || करम दर्शनावरण उदय से, अन्धेरा सट गया हृदय से । खिन्न हुआभव भय से, प्रभु को लाखों प्रणाम || जग० ॥ १ ॥ नव प्रकृति भव में भटकावे, मिन दर्शन पद पद अटकावे | अ प्रभु पद आधार, प्रभु को लाखों प्रणाम || जग० ॥ २ ॥ बाहर दीपक अन्तर दीपक, ज्योत जगी मिथ्यातम जीपक । प्रभु दर्शन बलिहार, प्रभु को लाखों प्रणाम || जग० ॥३॥ युगपत दो उपयोग न होते, क्रमभावी जीवन में होते । प्रभु का ज्ञान प्रमाण, प्रभु को लाखों प्रणाम ||जग० ||४|| तर्क दलीलों से नित उपर, रहता है आतम गुण सुन्दर । अगम अगोचर रूप, प्रभु को लाखों प्रणाम || जग० ॥५॥