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दर्शनावरणीय कर्म निवारण पूजा
॥ तृतीय पुष्प पूजा || ॥ दोहा ॥
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जीवन कुसुम विशेष को, प्रभु चरणे दो चाढ़ । आतम में परमात्म पद, दर्शन गुण हो गाढ़ || १ || कुसुम विकासी आतमा, कली कली खिल जाय । प्रभु दर्शन के योगतें, गुण सौरभ भर नाय ||२||
(तर्ज- चन्द्र प्रभु जिन चन्द्र नमो हितकारी रे० ) प्रभुपद कुसुम चढाओ, पुण्य बढ़ाओ रे नर चतुर सुजान । जीवन कुसुम कली विकसित हो जावे रे, सुजान ॥ टेर ॥ आँखों से प्रभुदर्शन चक्षु दर्शन रे, नर चतुर सुजान । प्रभुपद फरस हरस मन भरना भावे रे, सुजान ॥ प्र० ॥ १ ॥ प्रभु गुण रस निज रसना योगे गाओ रे, नर चतुर सुजान । गुण मुगन्ध जो पावे, बहु सुख पावे रे, सुजान ॥ प्र० ॥ २ ॥ प्रभु गुण कीर्तन श्रवण मनन लय लावे रे, नर चतुर सुजान | अचक्षु दर्शन यों पुण्य कमावे रे, सुजान ॥ प्र० || ३ || अवधि दर्शन सुरनर पशु भी पावे रे, नर चतुर सुजान । प्रभु दर्शन पा पावन पदवी भावे रे, सुजान ॥ प्र० ||४|| यो विकास होते जन केवल पाता रे, नर चतुर सुजान । भाग्यवान भगवान वही