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वृहत् पूजा संग्रह (तर्ज-मृषभ प्रभु भवजल पार उतार ) दरस मन हरप भयो भारी पाये पास कुमार दरस मन हरप भयो भारी टेजन जन के मुख निकसत वानी, प्रभु हैं प्राणाधार । चन्द चकोर मोर बादल ज्यों, त्रिभुवन तारणहार । द० ॥१॥ मति श्रुत अवधि ज्ञानी स्वामी, जन्म समय जयकार । अंगुष्ठामृत पान पुष्ट, कमनीय कला अवतार ॥ द० ॥ २ ॥ बाल कुमार किशोरावस्था, पार करें भगवान । जीवन साथी प्रभावती नृप, कन्या हुई प्रधान ॥ ६० ॥ ३ ॥ एक अनादि प्रभु रूप के, जो नहीं थे अवतार । विकसित मानवता से जिनमें थी प्रभूता साकार ।। द० ॥४॥ करुणा कोमलता भावों में, रही वीरता संग। नव कर नीलवरण तन सुन्दर, श्याम सलोने अंग द ०||५|| जनम जनम संस्कार सजाते, जीवन में नवरंग। संस्कारी थे प्रभु जीवन में, अजब निराले ढंग ॥ द०॥६॥ अश्वसेन वामा रानीसुत, पारस पारस रूप। सतसंगी जन लोहा होता, सुवरन सहज सरूप ॥ द० ॥ ७ ॥
॥दोहा॥ हुआ विरोधी कमठ शठ, वह भी ब्राह्मण पूत । जनम दरिद्री जगत ठग, नाम मात्र अवधूत ॥ १॥