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रल जय पूजा
३५६ सुखसागर भगवान के दर्शन, करते आद्रकुमार। हरि कवीन्द्र श्रेणिक अम्मड सम, हों अहं अवतार ।। यही० ॥५॥
॥दोहा॥ अहं सिद्ध स्वरूप ये, आतम विकसित भाव | होते हैं मन्यात्म में, दर्शन पुण्य प्रभाव ॥१॥ राग द्वेष अरि नाशते, चन्दन पूजन योग । होते अई आतमा, स्वयं सिद्ध उपयोग ॥२॥
(तर्ज-हा केसरियों कामण गारो) हां आतमा अरिहत होता, सम्यग दर्शन भावमें परिणत जन होता रे। आतमा अरिहंत होता ॥ टेर ।। नमो अरिहंताण पद रटते, भन भावी सन भाव विघटते । कटते करम कलेश लेश दुख का नहीं होता रे ॥ आ०॥१॥ अरिहंत पद के आराधन से, भान अरि के सहज निधन से। धन जीवन हो जाय आय शिन सुखका होता रे मा०॥२॥ अरिहंत अत सिद्ध हो जाते, अपुनर्भव शिव पदवी पाते । जहाँ नहीं यमराज, राज अपना ही होता रे ॥ आ०॥३॥ सम्यगदर्शन गुण अविकारी, प्रभु पद आराधक अधिकारी। सुखसागर भगवान ज्ञान गुण उन को होता रे |आ०॥४॥