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वृहत् पूजा-संग्रह मध्य गोल कणिका पीत वर्ण के चावलों से भरनी चाहिये। यहाँ सोने चांदी का आठ शाखाओं वाला एक सौ अट्ठावन पत्तों वाला पेड़ बनवा कर चढ़ावं। इस कर्म वृक्ष के काटने के लिये एक सोना चाँदी का बना कुल्हाड़ी कर्म वृक्ष की जड़ों में रखना चाहिये।
समवशरण में त्रिगड़े में भगवान श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा स्थापन कर। अखण्ड दीपक ज्योति जगाचं । धूप करें। भगवान के अभिषेक के लिए उत्कृष्ट चौसठ कुमार कुमारिकायें मध्यम आठ कुमार कुमारिकार्य और जघन्य एक कुमार कुमारी स्नानादि से शुद्ध पवित्र वस्त्र पहने हुए होने चाहिये। आठ दिन तक वहीं प्रत्येक कर्म निवारण के लिए अष्ट प्रकारी पूजा पढ़ाई जानी चाहिए। प्रतिदिन नये नये नैवेद्य नये नये फल फूलों का उपयोग करना चाहिए।
आठ दिन तक प्रभु भक्ति, गुरु भक्ति, साधर्मी भक्ति करनी चाहिए। रात्री जागरण, प्रभु गुण कीर्तन, सिद्ध पद का ध्यान, यथाशक्ति तपश्चर्या करते हुए करना चाहिए। यथाशक्ति याचकों को दान देना चाहिए। इससे भव भवान्तरों में बँधे आठ कर्मों का प्रचूर मात्रा में क्षय होता हैं । नवमें दिन उस कर्म वृक्ष को महोत्सव पूर्वक जिन मन्दिर में चढ़ा देना चाहिए।