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ज्ञानावरणीय कर्म निवारण पूजा
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जिन प्रतिमा जिन सम देखें, मति ज्ञान उन्हीं का लेसे । कुतर्क करी बात बनावें, मिथ्या मन मैल सनावें ॥ जि०॥६॥ कारण से कारज होता, कारण से जगता सोता । कारण पद प्रभु अधारो, कर दर्शन काज सुधारो ॥ जि० ॥ ७ ॥ हरि कवीन्द्र आतम भावे, गुण गार्वे गुण को पावें । प्रभु पूज कुसुम वर दावे, जीवन विकास हो जावे ॥ जि० ॥८॥
|| काव्य ॥
चञ्चत्सुपञ्चर वर्ण विराजिभिर्वै, सद्गन्धिभिश्च विशदै: सुविकास शीलैः । स्वान्तर्विकास- विधये हि यजामहे श्री, वीरं विशेष गुण पुष्प वरैः समन्तात् ॥
मन्त्र — ॐ ही अर्ह परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय ज्ञानावरणीय कर्म समूलोच्छेदाय श्री वीर जिनेन्द्राय पुष्पं यजामहे स्वाहा । ॥ चतुर्थ धूप पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
मति पूर्वक श्रुत ज्ञान हो, श्रुत के भेद अनेक । गुरु गम श्रुत संयोगर्ते, प्रकटे परम विवेक ॥२॥
परम विवेकी आतमा, उर्ध्वगमन धूप पूज प्रभुकी करें, द्रव्य भाव
हित सार | सुविचार ||२||