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वृहत् पूजा-संग्रह जनितांकुर बर्द्धनाय । स्वान्तर्मलापनयनाय यजामहे श्री, वीरं विशेष गुण भाव जलेन अक्तया । ___मन्त्र-ॐ हीं अहं परमात्मने अनन्तानन्त सम्यग्ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय ज्ञानावरणीय कर्म समूलोच्छदाय श्रीवीरजिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा। || द्वितीय चन्दन पूजा ||
॥दोहा॥ ज्ञानावरणी कर्म से, रुकता आतम ज्ञान ।
आंखों पर पाटा लगे, कैसे होवे भान ॥१॥ होता है अज्ञान में, भव भावी सन्ताप । प्रभु पद चन्दन योगते, मिटे मिले सुख धाप ॥२॥
(तर्ज-माला काटे रे जाला जीवका) गुण ज्ञान हमारा कर्मा ने रोका काटो कर्म को। शासन पति प्रभु की पूजा कर पाओ आतम धर्म को ॥ टेर ॥ ज्ञान अनन्ता है आतम में, जड़ कर्मों ने घेरा। अज्ञानी याते देता है, चौरासी लख फेरा रे ॥ गुण० ॥१॥ भाव असाव नहीं होता है, और अभाव न भावा । यात आतम का नहीं मिटता, चेतन मूल सुभावा रे ॥ गुण