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पहले दिन ज्ञानावरणीय कर्म निवारण पूजा पढार्वे ॥ ज्ञानावरणीय कर्भ निवारण पूजा॥
॥ मंगल पीठिका ॥
॥ दोहा॥ ॐ अहं परमातमा, श्रीफलवृद्धि पास । जिन हरि पूज्य सदा नमू , तारक तीरथ खास ॥१॥ मिथ्यात्वादिक हेतु से, आतम से जो काम । किया जाय बन्धन वही, कर्मरूप भर धाम ॥२॥ सन्ततिरूप अनादि है, सादि कर्म विशेष । कर्मरूप ससार है, रहता यही कलेश ॥३॥ भाव अकर्मक हो गये, वीतराग परमेश । वीतराग आराधना, हरती कर्म कलेश ॥४॥ आराधन के भेद भी, गुरुगम सुने अनेक । । तप कर प्रभु पद पूज़िये, द्रव्य भाव सनिवेक ॥५॥ कर्म तिमिर हर है यहाँ, तपपर ज्योति विशेष । कर्म निवारण तप करो, पूजो प्रभु हमेश ||६