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श्रीजिन हरिसागर सूरीश्वर शिष्यरत्न कविवर ___ श्री कवीन्द्रसागरोपाध्याय विरचित ॥ चौसठ प्रकारी पूजा ॥
॥ पूजा विधि ॥ शुभ मुहूर्त मे जल यात्रा चढा कर तीर्थादक लाना चाहिये। अष्ट कर्म निवारण हेतु रंगीन चावलों से मण्डल बनाना चाहिये। आठ पांखुडी सफेद चावलों से भरनी चाहिये। कमल की रेखायें पाँच वर्णी चावलों से बनानी चाहिये। रक्त गुलाल से श्री सिद्ध भगवान के आठ गुणों को प्रत्येक पाँखुडी मे क्रमशः आलेसित करने चाहिये । मन्त्र पद ऐसे लिसने चाहिये
१ ॐ ही अनन्त ज्ञान गुणिभ्यो नमः । २ॐही अनन्त दर्शन गुणिभ्यो नमः । ३ ॐ हीं अनन्त सुख गुणिभ्यो नमः । ४ ॐ ही अनन्त चारित्र गुणिभ्यो नमः । ५ ही अक्षय स्थिति गुणिभ्यो नमः । ६ ॐ हीं अमूर्त गुणिम्यो नमः । ७ ॐ हीं अगुरूलघु गुणिभ्यो नमः । ८ ॐ ही अनन्त वीर्य गुणिभ्यो नमः ।
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