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रत्नत्रय पूजा
३५५ मर भर पावे खेद ॥ ७॥ पुण्य योग पाया यहां, दर्शन जैन प्रधान । यहाँ सहज सुख सिद्धि का, पाया विशद विधान ॥ ८ ॥ सम्यग्दर्शन शुद्ध हो, ज्ञान चरण निस्तार । जनम मरण भव दुख का, रहे न लेश विकार ।। ६ ।। सम्यग्दर्शन ज्ञान मय, चरण रत्न ये तीन । मोक्ष मार्ग साधक गुणी, साधे भाव अदीन ॥ १०॥ परम गुणी जिनराज हैं, स्मारक निजगुण रूप। दर्शन बन्दन पूजना, करो भविम गुण भूप ॥ ११ ॥
(तर्ज राग धनासिरी तेज तरणि मुस राजे )
भाव रतन दातार, पूजो रे भवि वीवराग पद सार ॥ टेर।। राग आग ललता जन जीवन, पावा दुख अपार ॥ पूजो० ॥ वीतराग पद सेन सुधारस, अनहद आनन्दकार ॥ पूजो० ॥ १ ॥ राग-द्वप की गांठ खुलेगी, ज्योतिर्मय जयकार ॥ पूजो० ॥ जीवन होगा पावन जगमें, अजरामर अविकार ॥ पूजो० ॥ २ ॥ आप पूज्य प्रभु पूजा न चाहे, पर पूजक आधार ॥ पूजो० ॥ द्रन्य भारविध पूजो मविजन, गुरु आगम अनुसार ॥ पूजो० ॥३॥ नल चन्दन कुसुमादिक द्रव्ये, आठ अनेक प्रकार आपूजो०॥ सम्पग्दर्शन गुण तर प्रगटे, झान चारित श्रीकार || पूजो० ॥४॥